पाज़ेब - भाग(२)

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हमीदा खिड़की पर खड़े होकर यूँ ही सोच रही थीं तभी शह़नाज़ उसके पास आकर बोली.... क्या हुआ अम्मीजान?आप क्या सोच रहीं हैं? सब खैरियत तो हैं।। हाँ!सब खैरियत हैं,यूँ ही भाईजान की तबियत का ख्याल आ गया,कितने सालों से बीमार हैं ,मर्ज़ भी पकड़ में नहीं आता,हमीदा बोली।। आप इतना क्यों घबरातीं हैं? खुदा के फ़जल से मामूजान बिल्कुल अच्छे हो जाऐगें,शह़नाज़ बोली।। उम्मीद तो यही है,फिर जो अल्लाह की मर्ज़ी,हमीदा बोली।। अल्लाह की भी यही मर्ज़ी हैं कि मामूजान जल्दी से अच्छे हो जाएं,शह़नाज़ बोली।। आमीन..! आपकी दुआ कूबूल हो,हमीदा बोली।। अच्छा! ये बताइएं कि खाने में क्या