महाकवि भवभूति और मीमांसक उम्बेक की समानिकता एवं भिन्नता पर अभी तक कोई ऐसा निष्कर्ष प्राप्त नहीं हो सका है जो सर्वमान्य और सर्वग्राहय हो । दोनों ही पक्षों के पास अपने तर्क हैं और उन तर्कों का अपना औचित्य भी है। भवभूति तथा उम्बेक दोनों एक ही है अथवा भिन्न है? ---इस प्रश्न की ओर साहित्यकारों का ध्यान सबसे पहले आकृष्ट करने वाले स्वर्गीय श्री पांडुरंग पंडित थे। श्री पंडित ने इंदौर के श्री एम० बी० लेले से मालती माधव की लगभग 500 वर्ष पुरानी पांडुलिपि प्राप्त की। इस पांडुलिपि के तृतीय अंक की पुष्पिका में वह प्रकरण कुमारिल