मैं भी इंसान हूँ

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दिसंबर की एक और सर्द रात गुजर चुकी थी। कोहरे की झीनी चादर ने सूर्य की किरणों के धरा पर आगमन को सीमित कर दिया था।अमर ने लिहाफ से हाथ बाहर निकालकर बेड के नजदीक पड़े मोबाइल को उठाया और समय देखकर चौंक पड़ा। 'सुबह के आठ बज गए हैं, इसका मतलब दिन काफी चढ़ गया होगा और मैं हूँ कि अभी तक बिस्तर में ही दुबका हुआ हूँ।' मन ही मन बड़बड़ाते हुए वह चल दिया बाथरूम की तरफ नित्य कर्म से फारिग होने।कुछ देर बाद वह नहा धोकर बरामदे में पहुँचा तो ठंड के मारे उसे कंपकंपी छूट