रुपये, पद और बलि - 11

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अध्याय 11 पुलिस इंस्पेक्टर जोसेफ को देखकर सुधाकर से बोले "सर यह आपके... दोस्त.. है?" "हां क्यों ?" "कुछ नहीं.. जाइए। इन्हें कहीं देखा हो ऐसा लगा।" कार को सुधाकर ने आगे बढ़ाया। थोड़ी देर चलने के बाद धीरे से कार के पीछे कांच के द्वारा मुड़कर देखा - वह इंस्पेक्टर कार को घूर कर देखता हुआ खड़ा था। "सुधाकर" "हां..." "इंस्पेक्टर को मुझ पर संदेह हो गया लगता है।" "कैसे कह रहे हो ?" "कार को ही बार-बार मुड़-मुड़ कर देख रहे हैं ?" "इसलिए तुम्हारे ऊपर संदेह है कैसे कह सकते हो ?" "उनकी निगाहें ठीक नहीं।" "यह