ऐसा तो सोचा ना था 

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साठ वर्ष की आयु पार कर चुकी सुनीता सुंदर होने के साथ ही आकर्षक व्यक्तित्व की भी धनी थी। सुंदर छवि के कारण नारी को कठिनाइयों का सामना करना ही पड़ता है। जवानी की दहलीज़ पर क़दम रखने के बाद से ही पुरुष का छिछोरापन उनके द्वारा कि गई अप्रिय हरकतें और उनकी नीयत का पता चलने लगता है। सुनीता ने भी पुरुष के ऐसे रूप अवश्य देखे थे इसलिए वह इस तरह के लोगों की औकात अच्छी तरह से पहचानती थी। अब तो वह दादी नानी बन चुकी थी, नाती पोतों वाली सुनीता अब अपने आप को पूरी तरह सुरक्षित समझती