अंत... एक नई शुरुआत - 7

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अगले दिन सुबह पोस्टमार्टम के बाद मेरी ज़िंदगी सफ़ेद कफ़न में लिपटी हुई मेरी आँखों के सामने ज़मीन पर लेटी हुई थी और मैं बदहवास सी उसके करीब अपनी मौत की आस लगाए बैठी हुई थी।ठहरना जैसा कोई शब्द समय की किताब में नहीं लिखा है और इसीलिए समय कभी भी नहीं ठहरता,किसी के लिए भी नहीं।तो फिर भला वो मेरे लिए कैसे ठहरता!! मेरी ज़िंदगी के खत्म होने के बाद भी मेरी साँसें अनवरत चलती रहीं और इनके चलते हुए कुछ ही समय में मुझे ये एहसास भी हो गया कि अब इनको चलाने के लिए मेरा चलना भी