समीक्षा शहरीकरण के धब्बे [ लक्ष्मी नारायण अग्रवाल, कवि व लेखक, हैदरबाद ] मैं कहानी का बहुत अच्छा पाठक नहीं हूं। कारण ये है कि हिन्दी कहाँनियों में संवेदना का समावेश बहुत ज्यादा रहता है विषय भी अक्सर वही वही रहते हैं। आज के बदले हुए युग में जहॉ इन्सान मक्कारी की सारी हदें पार करता जा रहा है, एक भिखारी, एक गरीब, अपाहिज या स्त्री होने के कारण उसे भोला या सज्जन समझा लेना अब गले से नहीं उतरता। समय आ गया है जब हर वर्ग के चेहरे के पीछे चेहरे पर कलम चलाई जाए । इसलिए जब नीलम