वह स्त्री थी या जिन्न - अंतिम भाग

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……और फिर मुझे थका हुआ देख कर ज्यादा कुछ न बोली। अगली सुबह जब उठा तो मेरा सिर भारी लग रहा था । सो, बिछावन पर लेटा ही रह गया। बच्चों को आज स्कूल भी नहीं पहुंचा पाया। निर्मला को ही उन्हे स्कूल छोड़ने को जाना पड़ा। अपने रसोई के कुछ काम खत्म करके वह मेरे सिराहने आकर बैठी, और पुछी- “क्या बात है, इतना चिंतित क्यूँ हैं ? कल रात भी आप बहुत परेशान दिख रहें थें।” तब मैंने उसे बीते दो दिनों से उस गली में मेरे साथ घट रही सारी घटना के बारे में बताया। मेरी बातों