…अगले दिन, फिर अपनी दिनचर्या शुरू हो गयी। तड़के–तड़के उठकर सुबह का व्यायाम । नहा धोकर बेटे को विद्यालय पहुँचाना । नाश्ता कर के फिर ऑफिस को भागना। काम के दबाव से कब सुबह से दोपहर हो गया, पता ही न चला । मेरे सहकर्मियों ने खाना खा लेने को कहा। हमलोग आपस में बतियाते हुए खाना खाने लगें। बातचीत के क्रम में सामने वाले की अंगूठी देख मुझे बीती रात की घटना याद आ गयी। बीती रात की घटी सारी घटना मैंने उन लोगों को बताई। फिर क्या ! सबको खिंचाई करने का जैसे बहाना मिल गया हो -