चाँद- बदली की ओट में

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शाम गहरा गई थी। आसमान में चाँद चमक रहा था और रजनी अपने कमरे में पड़ी सिसक रही थी।आज वह सुबह से ही खुद को बड़ी असहज महसूस कर रही थी। हर साल की तरह आज भी उसने करवा चौथ का व्रत रखा था, लेकिन जिसके नाम पर उसने यह व्रत रखा था वह अमर तो उससे कोसों दूर अपने बिजनेस टूर पर था। उसके मन में कई तरह के विचार उमड़ घुमड़ रहे थे। 'क्या उसका अमर अब उससे दूर जा रहा था ? कई दिनों से उससे खिंचा खिंचा सा रहने लगा था अमर। अनमना सा, गुमसुम ! क्या