पारुल भारी कदमों से अपने घर का गेट खोलती है। वह फिर से एक बार कार की ओर मुड़कर देखती है। तो अविनाश अपने हाथ में पट्टी बांध रहा था । पारुल का दिल तो कार में ही वापस जाना चाहता था । उसमे हिम्मत ही नहीं थी की वह एक भी कदम आगे बढ़ाए। उसका दिल चिंता की वजह से हलक तक आ रहा था । वह धीरे-धीरे अपने घर की ओर आगे बढ़ती है । एक एक कदम बोझ की तरह लग रहा था । उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। पारुल एक गहरी सांस लेते