मूलतः खुद भी एक हास्य-व्यंग्यकार होने के नाते मुझे शुरू से हास्य और व्यंग्य से संबंधित रचनाएँ पढ़ने और लिखने में ज़्यादा आनंद आता है। मगर अब इसे मेरी खूबी कह लें या फिर कमी कि मैं कभी भी खुद के लेखन को अख़बारी कॉलमों की तय शब्द सीमा के हिसाब से ढाल नहीं पाया। एक दो बार थोड़ी नानुकुर और टालमटोल के बाद कहीं किसी अखबार या पत्रिका में छपने के लिए अपनी रचना भी तो छपने के बाद उसका ऐसा हश्र हुआ हुआ कि इस सबसे मोहभंग हो गया। खैर..लिखते वक्त हर बार कोशिश यही रही कि बेशक़