सामुदायिक रसोई योजना

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अपने देश में प्राचीन काल से ही देश में मंदिरों के माध्यम से सामुदायिक रसोई की भावना रही है। कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रह जाए, इसके लिए समाज में ‘भंडारे’ की योजना काम करती थी। दुनिया के अन्य हिस्सों में यह व्यवस्था शायद नहीं है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ हमारी संस्कृति का मूल तत्त्व रहा है। वह तो कुछ फिल्मों में समाज के धनाढ्य लोगों द्वारा शोषण को दिखाया गया है। वास्तव में हमारे समाज में भूखे को भोजन कराना – संस्कार में ही है। कोई भी अतिथि द्वार से भूखा न जाए। कबीरदासजी भी ईश्वर से इतना ही मांगते