अपराजिता उदास सी खिड़की के पास बैठी थी,बाहर हो रही बारिश भी उसके जलते मन को ठंडा नहीं कर पा रहीं थीं,अभी यहाँ राजीव और बच्चे होते तो फौरन पकौड़ों और चाय की फरमाइश कर बैठते,लेकिन मैं यहाँ अकेले सड़ रही हूँ,कितना खुशनुमा मौसम होता है इन पहाडियों पर ,लेकिन परिवार के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता.... कितनी बार सोचा कि नौकरी छोड़ दूँ लेकिन राजीव ही मना करते हैं,कहते हैं भला सरकारी नौकरी भी कोई छोड़ता है थोड़ा भविष्य की चिन्ता भी करो,बच्चों को काबिल बनाना है,मेरे अकेले की नौकरी से भला सबकुछ कैसे हो पाएगा और