दुर्लभ देह पाय मानव की, जो उन्नति पथ नहीं बनाते ।वह कृतघ्न हैं मंद बुद्धि हैं, अपना जीवन व्यर्थ गंवाते ।।अमृत पात्र दिया परमेश्वर, उसमें भरते गंदा पानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।ब्रह्मज्ञानयुत सद्गुरु शरणम्, होकर जीवन विधा विचारो।जीवन वीणा के तारों को,खींचो,कसो और झंकारो ।।अहो भाग्य सौभाग्य मनुज तन,भरो पात्र में अमृत पानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।विकसित हो आनंद तत्व तो,सुख सौरभ वयार आएगी।बन्धन नहीं रहेगा कोई, मुक्ति गीत सन्मति गाएगी ।।राह बता सकता वह सद्गुरु, ब्रह्म ज्ञान का जो विज्ञानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी