अविनाश गहरी नींद में सोया हुआ था की तभी कोई उसका नाम पुकार रहा है ऐसा उसे लग रहा था । लेकिन उसे लग रहा था कि शायद यह उसका सपना है । इसीलिए वह तकिया कान पर रखकर सो जाता है । लेकिन फिर भी आवाज बंद नहीं होती इसलिए वह आंखे खोलते हुए देखता है तो पारुल थी । जो उसे पुकार रही थी । अविनाश फिर से तकिए पर सिर रखते हुए आंखे बंद करते हुए कहता है ।पारुल: शहहह!! ( उंगली से अविनाश को छूते हुए ) अविनाश... अविनाश... गधे कहीं के अपना ये हाथी जैसे