मुक्ति न पूर्व संस्कारों से, चाहें नये गढ़ रहे न्यारे ।ध्यान न देते कभी ध्यान पर,भौतिकता में वक्त गुजारे।।इस दुनियां की चकाचौंध में, करते रहे सदा नादानी ।वीणा घर में रखी पुरानी,कदर न उसकी हमने जानी ।।अगर उतरते ध्यान गुहा में, तो बुद्धत्व हमें मिल जाता।आत्मज्ञान वा ब्रह्मज्ञान का,ब्रह्मकमल अंदर खिल जाता।।पर अज्ञान सिंधु धारा में, व्यर्थ बहादी जीवन दानी ।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी।।जप,तप,ध्यान,योग की नौका,चढ़ अज्ञान सिंधु तरजाते।आत्मभाव में सुस्थिर होकर,शुचि बुद्धत्व प्राप्त करजाते।।बुद्ध, विवेकानंद आदि बन,लिख सकते थे अमर कहानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।हम चाहें तो