वह अब भी वहीं है - 37

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भाग -37 मैं तुम्हारी कमर के गिर्द साड़ी लपेट कर पेटीकोट के अंदर खोंसने लगा तो तुम हंसने लगी। मेरा हाथ लगते ही तुम्हें गुदगुदी लगने लगती। तुम्हारी हंसी से मेरे मन में खुराफात सूझी। मैं जानबूझ कर साड़ी ऐसे ढंग से अंदर खोंसता कि तुम्हें ज़्यादा गुदगुदी लगे। यह सब मैंने तब-तक किया, जब-तक कि तुम हंसते-हंसते दोहरी नहीं हो गई। तुम्हारी आंखों से पानी न आने लगा। आखिर मैंने किसी तरह तुम्हें करीब-करीब उसी तरह साड़ी पहना दी, जैसी रिसेप्सनिस्ट पहनती हैं। जैसी रमानी बहनों ने पहनने को कहा था। हालांकि बड़े अस्त-व्यस्त ढंग से ही पहना पाया