अविनाश अपने घर पर आ तो गया था लेकिन उसके दिमाग में पारुल और सेम के बीच जो हुआ वही दृश्य घूम रहा था । मानो जैसे यह बात उससे पागल कर रही थी । उसका दिल ना चाहते हुए भी जल रहा था । जैसा किसीने आग सुलगा के रखी हो । वह समझ नहीं पा रहा था की क्यों!? उसका दिल काबू में क्यों नहीं हो सकता जिस तरह से दिमाग हो जाता है वैसे ही दिल क्यों नहीं काबू में नहीं हो पाता !? । वह गुस्से में टेबल पर पड़े वास को सामने दिवाल पर फेंक