रोज-रोज अपने आत्मसम्मान पर चोट सहन करती उर्मिला अपने मन में सोच रही थी कि आख़िर क्यों वह अपने आत्मसम्मान को प्रतिदिन तार-तार होने देती है? क्यों बात-बात पर ताने सुनती है? क्या इस परिवार के लोगों को सम्मान देना सिर्फ़ उसका ही कर्तव्य है? क्या उनका कर्तव्य कुछ नहीं जो उसे उसके परिवार से दूर अपने घर ले आए हैं? तभी ज़ोर से कानों में आवाज़ आई, "उर्मिला ज़रा एक गिलास पानी तो पिलाओ।" उर्मिला ख्यालों से जागी और हड़बड़ा कर उसने कहा, "जी अभी लाती हूँ।" पानी का गिलास लेकर वह अपने पति नीरज के पास गई, "आप कब आए? मुझे पता