मुझे तुम याद आएं--भाग(७)

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कजरी अपने घर में उदास खड़ी थी एकाएक उसे बाहर से बाँकें ने पुकारा.... कजरी रानी! मेले नहीं चलोगी मेरे संग,चलो ना साइकिल पर बैठाकर ले चलता हूँ।। तू फिर से आ गया मेरी जान खाने,नासपीटे मरता क्यों नहीं है? कजरी बोली।। क्यों ? मन नहीं लग रहा क्या डाँक्टर बाबू के बिना? उसी के संग मेला जाओगी क्या? बाँके बोला।। तुझसे क्या मतलब ? मैं किसी के भी संग जाऊँ,तू कौन होता है पूछने वाला? कजरी बोली।। हाँ! भाई! अब सब कोई तो तेरा वो डाक्टर बाबू हो गया है,दिखता नहीं है क्या मुझे? महीनों से उसके साथ ही