( परम ध्यान परम आनंद) लेखक : ब्रजमोहन शर्मा समर्पण : महर्षि रमण ( मनुष्यता के इतिहास में न देखा, न सुना, न पढ़ा कही ऐसा विरला संत जिसे महज १७ वर्ष की आयु में बिना किसी मन्त्र, जप, ताप, ग्रन्थ पथ, पूजा पाठ या किसी भी रंच मात्र साधन अपनाए सिर्फ कुछ क्षणों के लिए अपने शरीर की म्रत्यु देख आजीवन शारीर मन बुद्धि से परे सर्वोच्च आध्यात्मिक अवस्था सहज समाधि की प्राप्ति हुई ) copyright@brijmohansharma भूमिका :मित्रों यह ग्रन्थ ध्यान के सर्वोच्च ज्ञान, सर्वश्रेष्ठ विधियों व उससे प्राप्त होने वाला परम आनंद को द्रष्टिगत रखते हुए लिखा गया