स्त्री........(भाग-12)साड़ी ठीक करके मैंने अपने आप को शीशे में निहारा.....और मन फिर अभिमान से भर गया.....क्या कमी है मुझ में !! तब तक पतिदेव कमरे में आ गए...मैंने उन्हें शीशे में ही देख लिया था, कभी मैंने उन्हें यूँ अपने साथ भले ही पीछे खडे़ थे, देखा नहीं था.......दिल में आया कि मुझसे दिखने में कमतर ही दिखते हैं....वो क्या कहते हैं हाँ याद आया मुझसे उन्नीस ही हैं फिर भी बस पुरूष होने का कितना अभिमान है....पता नहीॆ क्यों ये ख्याल मेरे मन में इस पल आया कि उन्हें अभिमान ही है शायद पढाई का या फिर पिता के