स्त्री......(भाग-9)अगले दिन से माँ के बहुत मना करने के बाद भी मैं कपड़े धोने बैठ गयी.....ससुराल में काम करते रहने से यहाँ खाली बैठा नहीं जा रहा था। मैंने माँ को कहा कि मैं सब काम देख लूँगी, तुम आराम करो.....पर माँ को चैन कहाँ। मैंने काम नहीं करने दिया तो वो साड़ी ले कर बैठ गयी हाथ से काढने के लिए.....। माँ ने ये हुनर मुझे भी सीखा कर भेजा था और मेरे दहेज में माँ और मेरे हाथ की कढाई की साडियाँ थी, जिसमें एक साड़ी सास की भी थी.....हमारे गाँव में खाली समय में यही काम बहुत