स्त्री.... - (भाग-7)

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स्त्री.....(भाग-7)रेलगाड़ी कहने में जो मुझे खुशी होती थी वो ट्रेन कहने में नहीं...पर फिर भी समय के साथ बदलाव जरूरी है, ये मैंने अपने पति के मुँह से कई बार अपनी माँ को कहते सुना है, पर हर बार ऐसा लगता कि ये मेरे लिए ही कहा जा रहा होता था...।गाड़ी चलने का समय हो गया था, सुनील भैया ने एक बार फिर मुझे समझाते हुए एक सांस में कई हिदायतें दे ड़ाली। घर से चली थी तो मेरी सास ने कुछ रूपए दिए थे ,घर के लिए कुछ फल और मिठाई ले कर जाने के लिए और कुछ खर्च