लेखिका आर. चूड़ामणी अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा बुढ़िया अपनी काले रंग के प्रीमियर पदमिनी के पीछे की तरफ दोंनो हाथों को बांध कर बैठी थी। वें अकेली थीं। दरवाजा खुला रखकर हवा खा रही थीं। एक प्लास्टिक की बोतल में पानी को अपने पैरां के पास रख रखा था। मरीना सागर तट पर आज अच्छी हवा चल रही थी। रोज ऐसा होगा ऐसा विष्वास नहीं कर सकते। कभी-कभी षाम के समय तो यहां बहुत उमस होती है। चेहरे व गर्दन से पसीना बहता रहता है। रात को बरसात होगी ऐसा मन को लालीपाप देकर आष्वासन देना होता है। आज ऐसा