सुनो...!!!

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सुनो...!!!! तुम बनारस हो जाओ, मैं उसमें समाहित रस हो जाऊंगी । तुम प्रेम मग्न कृष्ण की बांसुरी हो जाओ, मैं उसकी मधुर ध्वनि में समाहित राधा हो जाऊंगी । तुम चौरासी घाट हो जाओ प्रिय, मैं उनमें उमड़ती आराधना हो जाऊंगी । तुम नाविक हो जाओ प्रिय, मैं गंगा में तैरती तुम्हारे स्पर्श से, नाव हो जाऊंगी । तुम अस्सी घाट की सीढियां हो जाना, मैं उसमें समाहित धूल हो जाऊंगी । तुम गंगा का किनारा हो जाना, मैं उससे स्पर्श होती गंगा का पानी हो जाऊंगी । तुम मेरे आराध्य महादेव का सुंदर मंदिर हो जाना, मैं तुम्हारे