यह कैसी विडम्बना है - भाग २

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आर्थिक संपन्नता के नाम पर उसे संपन्नता कहीं भी दिखाई नहीं दे रही थी। हर चीज में काट-कसर की जा रही थी। उसने कई बार वैभव और निराली को धीरे-धीरे कुछ बात करते भी सुना था। आर्थिक तंगी का सामना करते अपने परिवार के हालात समझने में संध्या को ज़्यादा वक़्त नहीं लगा। उसे हर समय कुछ कमी-सी लगती ही रहती थी। एक ही छत के नीचे रहते हुए, आख़िर संध्या से क्या-क्या और कब तक छुप सकता था। वह सोचती रही कि वैभव से बात करुँगी पर कर ना पाई। संध्या के विनम्र स्वभाव और उसके संस्कार उसे रोक