64 इंदु कभी भी अपने में खोने लगती, उसकी आँखों की कोर गीली हो जातीं फिर किसी की ज़रा सी भी आहट सुनते ही उसकी मुस्कान कानों तक खिंच जाती, अचानक सूखे गुलशन में जैसे बाहर आ जाती | “माँ!आपकी मुस्कान कितनी प्यारी है } उदासी आप पर अच्छी नहीं लगती | ” “पर –मैं उदास कैसे रह सकती हूँ भला, इतने प्यारे बच्चे हैं मेरे !”इंदु दुलार से समिधा पर ममता बरसा देती| सब एक-दूसरे की पीर पहचानते थे पर सब गुम थे, आख़िर है क्या इस ज़िंदगी का मसला ? जो कभी न तो हल हुआ है और