तपस्या

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चार वर्षीय सूरज के पिता दिव्यनाथ की असमय मौत से सूरज और उसकी मां जानकी पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। जानकी देवी अपने जीवन यापन और सूरज के पालन - पोषण को लेकर चिंतित रहने लगी। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद जानकी ने सूरज को पढ़ा लिखाकर , स्वाबलंबी और एक बेहतर इंसान बनाने का निर्णय कर लिया। अपने निर्णय को फलीभूत करने के लिए जानकी इस जीवन मझधार में सकारात्मक सोच के साथ कूद पड़ी। अपने लक्ष्य को दृष्टिगत रखते हुए, अभावों और परेशानियों से दो - दो हाथ करते हुए कंटकाकीर्ण