कोरोना काल में काम करने वालों के मानसिकता में काफी परिवर्तन हुआ है। बिटिया के प्रवेश परीक्षा के सिलसिले में पूर्वोत्तर के एक बड़े शहर में जाना पड़ा। आने-जाने, रहने-खाने-पीने आदि सभी जगह ऐसा प्रतीत हुआ कि कहीं न कहीं नये लोक में आ गया हूँ। धन की बर्बादी तो हो ही रही थी। जहाँ एक रूपये खर्च हो सकते थे वहां तीन रूपये खर्च करने पड़ रहे थे। जहाँ पहले सब कुछ चमकदार था, अब कुछ भी चमकदार नहीं लग रहा था। सत्कार की भावना करीब-करीब समाप्त हो चुकी थी। ऐसा लगा कि मानव, मानव नहीं रहा बल्कि