- 25 - डॉ. वर्मा का नियमित अलार्म - पंछियों की चहचहाहट - तो यहाँ सम्भव नहीं था, किन्तु स्पन्दन ने अलार्म की क्षतिपूर्ति कर दी। पाँच बजने ही वाले थे कि स्पन्दन की रूँ-रूँ की आवाज़ से डॉ. वर्मा की आँख खुल गई। उसने स्पन्दन का डायपर बदला और उसके लिए दूध की बोतल तैयार की। दूध पीने के बाद स्पन्दन तो फिर से सो गई और डॉ. वर्मा फ्रेश होकर योग-प्राणायाम करने लगी। प्राणायाम करने के पश्चात् वह सोचने लगी कि मनु को फ़ोन करूँ या नहीं! पता नहीं, वे अभी उठे भी होंगे या नहीं! वह अभी