अन्जानी सी दोस्त...

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कल शाम को अपनी पत्नी के संग बाज़ार से लौट ही रहा था कि अचानक ही सोसायटी के गेट पर कार पार्किंग के समय वो मिल गई,उसने हाथ हिलाकर हैलो बोला तो मैंने भी मुस्कुराते हुए हाथ हिला दिया फिर वो बाहर निकल गई और मैं पार्किंग में आ गया,ये सब मेरी पत्नी ने भी देखा और मुझसे पूछा.... कौन थी वो? मैंने कहा, दोस्त।। उसने पूछा,नाम क्या है उसका? मैंने कहा,मुझे नहीं मालूम।। ऐसा कैसे हो सकता है कि नाम नहीं मालूम और उसे अपनी दोस्त कहते हो? पत्नी बोली।। सच में सुहासिनी ! मुझे उसका नाम नहीं पता,मैंने