रीगम बाला - 11

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(11) “तुम्हें गालियाँ देता है ?” “हाँ...उर्दू में ।” “मुझे भी सिखा दो उर्दू की गालियाँ ।” “अरे जियाओ....ही ही ही ।” तुम से तो बनेगी भी नाहीं ।” “बताओ भी तो !” “नाहीं – मुझे शरम लगती है ।” “तब तो सिखानी ही पड़ेगी नहीं दोस्ती ख़त्म ।” “अरे नाहीं नाहीं....अच्छा ।” एक हलकी सी गाली बताता हूँ – पता नाही कि कह भी सकोगी....सुनो, हराम जादा ।” “हराम जादा.....हराम जादा....हराम जादा ।” वह रटती रही और कासिम ही ही ही करता रहा । “अब यह बताओ कि यह गाली किस वक्त दी जाती है ?” निलनी ने पूछा