शाम 6:30 बजे के पहले ही सिद्धार्थ घाट पर आ चुका था।श्रद्धालु भक्त, वहां के रहिवासी, पंडित सब घाट पर पहुंच चुके थे, उसमें सिद्धार्थ भी शामिल था। आरती शुरू हो गई आरती की धुन में कहीं खो गया था सिद्धार्थ। देखती हूं कल वैसे भी बिजी हूं। सिद्धार्थ की आंखें खुल गई। वो नहीं आई। सिद्धार्थ के बात में एक फैसला नहीं बल्कि एक निराशा जान पड़ रही थी।सिद्धार्थ के कंधे पर किसी ने हाथ रखा।सिद्धार्थ पीछे मुड़ा। रागिनी खड़ी थी। आह!!हमेशा पीछे से आकर डराना क्या आदत है तुम्हारी? आदत!? हमेशा? आदत तो बहुत बड़ी बात होती है। एक बार लगती है, तो