भाग (1) जिस दिन मैंने पहली पहली बार शीतल को देखा, उसे देख कर मन वात्सल्य भाव से भर गया। वह पहला दिन, मेरी शादी के बादससुराल का था ।मैंने जैसे ही अपनी ससुराल में उसे देखा तो प्यार करने के लिए अपनी गोद में ले लिया और वह भी ऐसे लिपट गई जैसेउसका मेरा पुराना कोई रिश्ता हो। वह चार वर्ष की बच्ची शीतल मेरे पास ही बैठी रही । अपनी बाल सुलभ बोली में सब का मन मोह रही थी । ससुराल में मैं दुल्हन के रूप में बैठी थी,महिलाएँ मेरी मुँह दिखाई करने के लिए आ रहीं