मौत का खेल - भाग- 34

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सलाम-नमस्ते, स्वास्थ्य थोड़ा खराब है.... मगर आप लोगों का स्नेह खींच लाया लैपटॉप तक.... 34वां भाग आपके सामने है..... मेजर विश्वजीत की मौत पर दुखी हूं..... विक्रम के खान की तरह यह किरदार भी आपको लंबे वक्त तक याद रहेगा... यकीनन वह आसमां था और सर झुकाए बैठा था... श्रद्धांजलि मेजर विश्वजीत...! *** * *** वह आसमां था “एक जासूस की तरह सोचा करो। पुलिस वालों की तरह नहीं।” सोहराब ने सवीम को टोकते हुए कहा, “अबीर को अगर उसे मारना होता तो वह यह काम उसके घर की जगह कहीं बाहर करता। बाहर उसके लिए मेजर आसाना टार्गेट होता।