बेपनाह - 25

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25 “कितना प्यारा है ऋषभ, एकदम निश्चल मन का है न स्वार्थ है, न कोई लालच। कल से उसके साथ है पर एक बार भी उसने उसे गलत तरीके से टच नहीं किया। ऋषभ तुम मुझे सच में प्यार करते हो, सच्चा और पवित्र प्यार। वैसे प्यार तो पवित्र ही होता है लोगों के मन में कलुषता होती है वे ही प्रेम के मुंह पर गंदगी फेंक देते हैं। “क्या सोचने लगी? सब अच्छा ही होगा और मेरे होते तुम्हें दुखी होने की जरूरत नहीं है ! आओ बर्फबारी में फोटो खींचते हैं !” किसी छोटे बच्चे की तरह से