बेपनाह - 20

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20 “क्या हुआ तुम यहाँ ?” “हाँ मुझे नींद नहीं आ रही है।” “अरे ! जाओ सो जाओ जाकर।” “नहीं तुम भी मेरे साथ चलो वहाँ पर।” “पागल हुई है क्या ? यहाँ दादा जी क्या सोचेंगे?” “सोचने दो, जो भी सोचना है ! मुझे किसी की परवाह नहीं है ! मैं तुमसे प्रेम करती हूँ कोई मज़ाक नहीं है प्रेम करना ! मेरी जान निकलती है तुमसे पल भर को भी अगर दूर जाती हूँ तो।” “हम हमेशा साथ हैं और साथ ही रहेंगे तुम मेरी हो।” “तुम भी सिर्फ मेरे हो ! समझे ऋषभ।” “हाँ भाई हाँ !