सरल नहीं था यह काम - 5 - अंतिम भाग

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सरल नहीं था यह काम 5 काव्‍य संग्रह स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना 34 तीर के निशान वे बने तीर के निशान वे बने सर वे जो कमान न बने जो अनोखी राह को चुने भीड़ के समान न बने जाने कैसी कोशिशें थीं कि कोई भी निदान न बने आंधियां ही ऐसी कुछ चलीं फिर कोई वितान न तने शांति की जो बात कर रहे ओठ रक्‍त पान से सने जकड़े रहे बंधनों में जो पर न आसमान में तने तेरा ही गुणगान हे प्रभु खंजरों की