पद्मा सचदेव के सफ़र की समाप्ति

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“तुम्हें मालूम था, यह राह नहीं निकलती, जहाँ पहुँचना मैंने, तुम उस तरफ जा भी नहीं रहे थे ,फिर भी तुम चलते रहे मेरे साथ-साथ…” इन पंक्तियों के रचयिता पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित डोगरी भाषा की पहली आधुनिक कवयित्री पद्मा सचदेव हमारे बीच नहीं रहीं। उन्होंने मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस लीं। वे एक बेहतरीन कवयित्री थीं, लिखने पढ़ने वालों की चहेती लेखिका थीं, दूसरों की चिंता करने वाली साहित्यकार थीं और दिल से जितनी नरम थीं, उतनी ही साहसी भी। हिंदी तथा डोगरी साहित्य के लिए उनका जाना एक आघात से कम नहीं है। उनकी आत्मकथा