मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(१)

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"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी