आर्यन जब इस बार अपने घर से वापस लौटा तो काफ़ी अनमना सा था। अपना घर, अपना शहर, अपने दोस्त... सब कुछ जैसे उसे बेगाना सा लगा। यही तो ज़िन्दगी है। जब हम कुछ पाने के लिए तन -मन -धन से जुट जाते हैं तो हम ये भी भूल जाते हैं कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। लेकिन जब अपने सपनों की पतंग हमारे हाथ लग जाती है तो हम पाते हैं कि आसमान में उड़ता हमारा ये स्वप्न-शरारा बिल्कुल अकेला है। इसका कहीं कोई संगी- साथी नहीं। अब जो भी इसके पास आता है वो