हरिहर शालिनी का इंतज़ार कर रहा था, कहीं बहनजी, किसी मुसीबत में न फँस गयी हों। वहाँ नहर का पानी शांत था। तभी उसमें हलचल हुई। और शालिनी बाहर निकली। खुद को किनारे के पास लाकर सांस लेने लगी। गीले सूट से मुँह पोंछ आसमान की तरफ देखा। फिर घड़ी की तरफ देख, गिरे स्कूटर की तरफ बढ़ने लगी। यह समाज हमेशा यही सोचता है कि औरत हमेशा डूब ही जाती हैं। तैरना तो उसने तभी सीख लिया था, जब उसके पति ने उसे नदी में फेंका था। उसे पता था, हर बार उसे बचाने के लिए कोई किनारे पर