मैं तो ओढ चुनरिया अध्याय 32 रातभर किताबें अलग अलग आकार प्रकार में मेरी आँखों के सामने नाचती रही । ढेर की ढेर किताबें । जरा सा आँख लगती कि वे किताबें मेरे सामने नाचने लगती । मैं उन्हें पकङना चाहती तो वे गायब हो जाती । मैं उन्हें पकङने के लिए भाग दौङ करने में पसीना पसीना हो जाती तो मेरी नींद खुल जाती । सारी रात किताबों से मेरी आँखमिचोली चलती रही । इससे पहले माँ ने मुझे पाठ्यपुस्तकों के अलावा केवल व्रतकथा की पुस्तकें ही पकङाई थी जिनका पाठ मुझे पङोस की औरतों को