एक ज़माने में हमारा देश जगद्गुरु था। देश-विदेश से लोग शिक्षा पाने के लिए भारत आते थे। एक से बढ़कर एक शिक्षा संस्थानों से हमारा देश जगमग करता था। विक्रमशिला, नालंदा तथा तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय जगप्रसिद्ध थे। विद्वानों की एक परंपरा अपने देश में थी। विद्वानों का आदर होता था। राजे-महाराजे भी विद्वानों के आने का समाचार सुनकर अपने स्थानों से उनके सम्मान में उठकर खड़े हो जाते थी। कहने का अर्थ यह है कि लक्ष्मी भी सरस्वती के सामने झुकती थी। समय बदला। हमलोगों ने आपस में लड़ना प्रारंभ कर दिया। परिणाम गुलामी के रूप में आयी। विदेशियों ने