लगभग सप्ताह भर से चुप हूं। मस्ती, मजाक, फालतू की बाते करना बिलकुल छोड़ दिया है। तय कार्य के अलावा दूसरा कोई काम नहीं अब पंसद नहीं। दफ्तर से रुम और किताब पढ़ने तक खुद को समेट कर रखा है। फिजूल चर्चाओं में खुद को शामिल करने से बचने लगा हूं। जिस दिन से चुप रहना शुरू किया, उसके पिछली रात शराब के उत्सव में खुद को जीवन के तनाव, दुख से उन्मुक्ति होता हुआ पाया था। स्वभाव में चंचलता थी, जो मुझे अप्रिय लगी थी। मुझे लगता है, चंचलता में वर्तमान को महसूस नहीं किया जा सकता। खुद को