गुनाहों का देवता - 30

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भाग 30 ''सुधा, यह तो सच है कि मैंने तुम्हारे मन को बहुत दुखाया है, लेकिन तुम तो हमारी हर बात को, हमारे हर क्रोध को क्षमा करती रही हो, इस बात का तुम इतना बुरा मान गयी?'' ''किस बात का, चन्दर!'' सुधा ने चन्दर की ओर देखकर कहा, ''मैं किस बात का बुरा मान गयी!'' ''किस बात का प्रायश्चित्त कर रही हो तुम, इस तरह अपने को मिटाकर!'' ''प्रायश्चित्त तो मैं अपनी दुर्बलता का कर रही हूँ, चन्दर!'' ''दुर्बलता?'' चन्दर ने सुधा की अलकों को घटाओं की तरह छिटकाकर कहा। ''दुर्बलता-चन्दर! तुम्हें ध्यान होगा, एक दिन हम लोगों ने