ये उन दिनों की बात है - 34

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अच्छा!! अब हम चलते है, दादाजी का कहना था और सागर का मुँह लटक गया |इतनी जल्दी!! अभी तो मैंने ठीक से अपनी दिव्या को देखा भी नहीं, सागर ने मन ही मन कहा |मैं खुद भी मायूस हो गई थी | हम दोनों ही एक दूसरे से मिलने को बेताब थे, लेकिन हाय!! ये मजबूरियाँ, ये दूरियां, हम दोनों को ही तड़पा रही थी पल-पल |उस पूरे माहौल में सिर्फ हम दोनों ही थे जो मायूस थे, खामोश थे | बाकी सब आपस में बतिया रहे थे | कोई भी नहीं जान सकता था हम दोनों के दिलों की