विशाल छाया - 9

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(9) “कौवा नहीं, वह एक औरत थी । ” हमीद ने कहा ।  “यहां से निकलने का मार्ग जानते हो ?” अचानक शशि पूछ बैठी ।  “मैं आदमी की औलाद हूँ और केवल जन्नत से निकलने का मार्ग जानता हूँ पता नहीं तुम जन्नत का अर्थ समझती हो या नहीं ?” “जन्नत स्वर्ग को कहते है । ” शशि जल्दी से बोली ।  “हो सकता है की तुम्हारा कहना ठीक हो । ” हमीद ने कहा”मगर मेरी भाषा में औरत की गोद को जन्नत कहते है । ” “यह मिर्चे क्यों जला रहे हो ?” शशि हँस कर बोली ।